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दोस्त की बहन को खाली खड़ी ट्रेन में चोदा

Posted on December 15, 2025 by Sumithra Reddy

ट्रेन Xxx कहानी में मैं अपने दोस्त के साथ उसकी बहन को पेपर दिलवाने गया. हम दोनों पहले से ही उसे चोदा करते थे. उस रात को हमारी वापिसी की गाड़ी में हमने उसे नंगी करके चोदा.

दोस्तो, आप सबको मेरा नमस्कार.
मैं आपका अपना अभिषेक.

में मेरे और मेरे दोस्त सचिन और उसकी मस्त प्यारी दीदी के बारे में जान ही लिया है कि कैसे हम दोनों भाई दीदी के साथ प्यार करते थे.

जाह्नवी दीदी सच्ची में किसी परी से कम नहीं थी क्योंकि हमारे मोहल्ले के बच्चे से लेकर बूढ़े तक उनके नाम की मुठ मारते थे.
क्योंकि दीदी की 32 की चूचियां इतनी मुलायम थीं कि अच्छे-अच्छे लौंडों को पागल कर दें … और दीदी शक्ल से बिल्कुल संस्कारी और ऐसी मासूम लगती थीं मानो लंड का उन्होंने नाम ही न सुना हो.

यह तो हमारी किस्मत इतनी ज्यादा प्यारी थी कि हम लोग दीदी को इतने प्यार से रंडी की तरह चोद रहे थे और वह भी जितनी शक्ल से संस्कारी थी, उतनी ही अन्दर से बेहद प्यासी थी.

अब मैं सीधे ट्रेन Xxx कहानी पर आता हूँ क्योंकि आप लोगों को इस कहानी के सभी पात्रों के बारे में पुरानी कहानी से सब मालूम है.

एक बार दीदी का पेपर भोपाल (बदला हुआ शहर) में था और उस वक्त गर्मी का मौसम था.
तो जाह्नवी दीदी के पापा ने जाह्नवी के साथ सचिन को पेपर दिलाने के लिए भेज दिया.

सचिन का मेरे पास कॉल आया- भाई, जाह्नवी दीदी के पेपर के लिए मैं भोपाल जा रहा हूँ.

हमारे शहर से एग्जाम देने जाने के लिए कोई डायरेक्ट ट्रेन नहीं थी, तो एक दिन पहले जाना पड़ता था.
मैंने कहा- भाई, तू अकेले चला जा, मैं क्या करूँगा?

तो वह बोला- साथ चल ना. दीदी के साथ मजा करेंगे.
यह सुनकर मैंने उससे कहा- ठीक है. मैं बाद में आता हूँ!

इस पर वह बोला- हां भाई यह भी ठीक है. तू भोपाल तब आना, जब जाह्नवी दीदी का पेपर खत्म हो जाए, तो तू हमारे साथ वहां से साथ में आ जाना. यहां से मैं और जाह्नवी अकेले जाएंगे.
मैंने कहा- ठीक है.

जब जाह्नवी और सचिन साथ में ट्रेन से पेपर देने के लिए निकल गए क्योंकि अगले दिन पेपर था.

भोपाल में जाह्नवी की मौसी रहती थीं तो जाह्नवी और सचिन ने मौसी के यहां रात गुज़ारी.

सुबह पेपर देने के लिए निकल पड़े.

दोपहर 2 बजे तक दीदी पेपर देकर फ्री हो गई.
फिर मैं भी दीदी से मिल गया.

दीदी मुझे देखकर सरप्राइज़ हो गईं.
फिर हम तीनों साथ में शहर घूमे.

वैसे भी हम दोनों दीदी से उम्र में छोटे थे तो किसी को देखकर हमें कोई शक नहीं होता था.

फिर हमने साथ में खूब एन्जॉय किया.

रात को 12 बजे हमारी ट्रेन थी जो इसी स्टेशन से शुरू होती थी.

हम घूमते-घूमते थक गए थे, तो सीधे स्टेशन ही आ गए.

वहां हमारी ट्रेन स्टेशन पर अंतिम प्लेटफॉर्म पर खड़ी थी, जहां कभी-कभी अंधेरा रहता था और ट्रेन में भी अभी लाइट चालू नहीं की गई थी.

हम तीनों अपने स्लीपर कोच में आ गए और अपनी सीट पर तीनों साथ में बैठे थे.

तभी मेरा हाथ दीदी की जांघ को टच हो गया.
तो मेरा मन अब दीदी की चुदाई करने का होने लगा क्योंकि आज दिन में दीदी टाइट टी-शर्ट और टाइट जींस पहने थी तो पूरी कयामत ढा रही थीं.

दीदी हम दोनों के बीच अंधेरे में बैठी थी और हाथ में चिप्स का पैकेट लिए थीं जिस कारण मेरा हाथ बार-बार उनकी जांघ को टच हो रहा था.

हम दोनों आपस में नॉर्मल बात कर रहे थे और अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था.
मैं अपने हाथ से चिप्स नहीं, बल्कि दीदी की जींस के ऊपर से जांघ सहलाने लगा.

दीदी कुछ नहीं बोलीं.
फिर मैं दीदी के पेट और नाभि के साथ थोड़ी देर खेला.
जब मैं दीदी के बूब्स मसलने लगा, तो दीदी के हिलने से सचिन समझ गया.

उसने तुरंत मोबाइल की टॉर्च चालू करके देखा और बोला- भाई, तुझे बिल्कुल शर्म नहीं है. यहां किसी ने देख लिया तो!
मैंने कहा- अबे चूतिए लौड़े, अंधेरे में हम लोग जुगनू हैं क्या … जो कोई देख लेगा.
तो वह बोला- भाई फिर भी!

मैंने कहा- कुछ नहीं होगा. मैं बस ऊपर से कर रहा हूँ, कौन सा मैंने जाह्नवी दीदी को नंगी कर दिया है. कोई आएगा, तो थोड़ा दूर हो जाऊंगा.
फिर वह वापस से लग गया.

अब मैंने दीदी की जींस की बटन खोलकर हाथ अन्दर डाल दिया और पैंटी के ऊपर से चूत पर हाथ रखा.

मैं गर्मी को महसूस करने लगा.
सिर्फ़ हाथ रखकर पहली बार इस तरह गर्मी महसूस करने में बहुत मज़ा आने लगा.

तभी सचिन बोला- यार दीदी, अब मेरा भी मन होने लगा है.
तो दीदी बोली- अभी तो वैसे भी ट्रेन शुरू होने में 3 घंटे हैं. वैसे भी लोग 11:30 बजे से पहले नहीं आएंगे.

दीदी सीट से टिककर बैठ गई.
मैंने अपना हाथ दीदी की पैंटी के अन्दर डाल दिया और अब सीधे चूत पर उंगली से खेलने लगा.

सचिन ने दीदी की टी-शर्ट ऊपर करके ब्रा के ऊपर से दूध मसलना शुरू कर दिया.
तभी मैंने दीदी की जींस थोड़ी नीचे कर दी.

दीदी बोली- पागल, कोई आ जाएगा तो दिक्कत हो जाएगी. जींस पहनने में बहुत टाइम लगता है, ये बहुत टाइट है!

मैंने कहा- दीदी आप जींस निकाल कर लोअर पहन लो.
दीदी बोली- हां, यह ठीक है.

फिर दीदी ने बैग से एक लोअर और ढीली-सी टी-शर्ट निकाल ली.
दीदी वहां सीट पर बैठकर ही जींस निकालने लगी.

मैंने कहा- प्यारी दीदी ये अपना घर नहीं है. जाकर टॉयलेट में कपड़े चेंज करो.
तो दीदी ट्रेन के टॉयलेट में जाने लगी.

सचिन बोला- दीदी ब्रा-पैंटी भी उतार लेना.
दीदी बोली- ठीक है.

थोड़ी देर में दीदी वापस आई और बैग में जींस, टी-शर्ट और पैंटी रख दी.

मैंने कहा- दीदी आपकी ब्रा?
वह बोली- नहीं यार, बिना ब्रा के निप्पल बाहर से दिखते हैं, किसी को भी शक हो जाएगा.

सचिन बोला- दीदी बैग से आप अपनी चुन्नी निकाल लो. जब कोई आए, तो अपना दुपट्टा ओढ़ लेना.
दीदी बोली- हां, ये ठीक है.

तो सचिन ने दीदी की टी-शर्ट के अन्दर हाथ डालकर ब्रा उतार दी और बोला- दीदी आज मन तो कर रहा है आपको घर तक नंगी लेकर जाऊं.
दीदी बोली- पागल. फिर इस सीट पर मुझे देखने और चोदने वालों की लाइन लग जाएगी.

यह सुनकर हम सब हंसने लगे.
अब हम तीनों वापस पहले की तरह बैठ गए.

मैं फिर से दीदी की चूत को सहलाने लगा.
बिना पैंटी की चूत को सहलाने का अलग ही मज़ा आ रहा था.

अब मैंने दीदी को लेटने को कहा और दीदी भी झट से सीट पर लेट गई.

मैंने अब दीदी के लोअर को घुटनों तक उतार दिया और सचिन ने टी-शर्ट को गर्दन तक करके दीदी के बूब्स पीना शुरू कर दिया.

ट्रेन की लोअर सीट नीचे होती है तो सचिन नीचे बैठकर बड़े प्यार से अपनी दीदी के बूब्स छोटे बच्चों की तरह पी रहा था.

मैंने दीदी के लोअर को घुटनों तक करके उनकी टांगें ऊपर उठाकर उनकी चूत को चाटना शुरू कर दिया.
दिन भर का पसीना चूत को और ज़्यादा सुगंधित कर रहा था.

दीदी अब पानी छोड़ने की कगार पर थी.
वह बोली- अभिषेक, अब तुम अपना लंड अन्दर तक घुसा दो यार और चोद दो मुझे.
मैंने कहा- दीदी आज चोदने का मत बोलो … कोई सुन लेगा, तो आपको आज पक्का रंडी बनना पड़ेगा.

तभी दीदी ने ‘आह्ह् … आह्ह्ह’ करती हुई मेरे मुँह पर अपना पानी छोड़ दिया.

मैं चुपचाप पूरा पानी पी गया और फिर वापस दीदी के पेट के दोनों तरफ पैर करके बूब्स के बीच में लंड रखकर बूब्स चोदने लगा.

सचिन ने अब नीचे दीदी की चूत में एक झटके से पूरा लंड अन्दर डाल दिया.
दीदी जोर से चिल्लाने की कोशिश की तो मैंने एक हाथ से उनका मुँह दबा दिया.

थोड़ी देर बाद जब मैंने हाथ हटाया तो दीदी ने सचिन से कहा- बहनचोद धीरे नहीं कर सकता था!
अब सचिन ने दीदी की दोनों टांगें पकड़ कर तेज़ झटके मारना शुरू कर दिया.

दीदी ‘आह्ह्ह … आह्ह्ह्ह भाई … धीरे धीरे चुदाई कर!’ चिल्ला रही थी, परंतु सचिन को कहां कोई बात सुनने वाला था.
मैंने कहा- दीदी आप दोनों मजा करो. मैं बाहर देखता हूँ, कोई है तो नहीं!

तो मैं उठकर बाहर निकल आया.

उधर देखा तो ना कोई ट्रेन में था … और ना कोई अभी प्लेटफॉर्म पर दिख रहा था.
मैं जाह्नवी वाली खिड़की पर आया और सचिन से बोला- भाई आराम आराम से चोद ले. कोई नहीं आ रहा है!

जाह्नवी दीदी बोली- मादरचोद, तुम लोग तो मुझे लगता है दुनिया की हर जगह चोद डालोगे.
मैंने कहा- दीदी मन तो मेरा यही करता है.

सचिन बोला- भाई तू बाहर देख. कोई आए, तो बताना.
मैं अब खिड़की से दोनों भाई-बहन की ट्रेन Xxx चुदाई देख रहा था और बाहर खड़े होकर रखवाली कर रहा था.

थोड़ी देर में सचिन का होने वाला था.
उसने कहा- दीदी अन्दर ही निकाल दूँ? जाह्नवी बोली- नहीं यार, नीचे गिरा देना.
सचिन ने कहा- दीदी मुँह में ले लो न!

वह बोली- नहीं यार.
सचिन बोला- तो पेट पर गिरा दूँ?
दीदी बोली- पागल, मैं यहां साफ कैसे करूँगी और पूरे रास्ते मुझे इसकी चिप चिप से घिन-सी आएगी यार!

पर सचिन कहां मानने वाला था, उसने दीदी के मुँह में लंड डाल दिया और फिर दीदी के मुँह में ही पानी छोड़ दिया.

उसने लंड को मुँह में ही घुसेड़े रखा, जिससे दीदी को मजबूरी में पूरा पानी पीना पड़ा.

फिर सचिन ने अपनी जींस पहनकर बाहर आ गया.

मैं अन्दर ट्रेन में गया तो दीदी उठकर बैठ गई थी.

मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो वह बोली- कुछ नहीं यार. अब बस, मैं 2 बार पानी छोड़ चुकी हूँ, अब और नहीं!
मैंने कहा- ठीक है दीदी.

मैंने टॉर्च चालू करके देखा, सचमुच सीट पूरी तरह दीदी के पानी से गीली हो चुकी थी.

मैं दीदी के होंठ चूसने लगा, तो दीदी फिर से लेट गई.

अब मैंने दीदी के मुँह, माथे, गाल को चूम लिया और कभी चाटने लगता, कभी उनके कान को पूरा मुँह से चूस लेता.

दीदी फिर से गर्म होने लगी.

मैंने उनकी टी-शर्ट ऊपर कर दी.

दीदी बोली- भाई, 10 बज गए हैं. तू पहले अपना पानी निकाल ले, वरना बाद में कोई आ गया, तो मुझे मत बोलना कि अधूरा छोड़ दिया!

मैंने कहा- दीदी आप तो मज़े लो.
मैं तो सीट पर बैठकर भी आपके हाथ से अपना हिलवा लूँगा.

वह बोली- ठीक है भाई. खेल ले अपनी रंडी के साथ.

वह खुद को मेरी रंडी ही बोलती है.
मैं वापस दीदी के बूब्स पीने लगा, फिर उनका पूरा पेट और नाभि को जीभ से चाटने लगा.
फिर लोअर को नीचे घुटनों तक कर दिया और उनकी चूत को सहलाने लगा.

मैं फिर चूत चाटने लगा, पर मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि सचिन और दीदी का पानी बाहर आ रहा था.

अब मैंने दीदी को वापस खड़ी कर दिया.
दीदी को लगा कि मैं खड़े करके उनकी चूत में डाल दूँगा, तो उन्होंने एक पैर सीट पर रख दिया.

मैंने कहा- मेरी जान मुझे तेरी चूत नहीं, गांड ही पसंद है.
दीदी बोली- तुम बहुत बड़े कुत्ते हो सच में!
मैंने कहा- हां मेरी कुतिया.

फिर दीदी को नीचे घुटनों के बल बैठने को कहा और सीट से सटाकर कुतिया बना दिया.
अपने लंड पर उनसे थूक लगवाया और उनकी गांड में भी मैंने खूब सारा थूक भर दिया.

फिर दीदी की गांड पर लंड रखा, तो वह बोली- आराम से करना, वरना मैं चीख निकाल दूँगी तो दिक्कत हो जाएगी!
मैं उनकी सूखी गांड में धीरे-धीरे लंड अन्दर डालने लगा और उनके मुँह पर हाथ रखकर आवाज़ रोक लिया.

धीरे-धीरे पूरा लंड गांड में डाल दिया.

दीदी बोली- यार, बहुत दर्द हो रहा है.
मैंने कहा- थोड़ी देर होगा बस.

फिर उनकी गांड को कुछ देर चोदते हुए गांड में ही अपना पानी छोड़ दिया.

दीदी नाराज़ हुई तो मैंने कहा- रंडी, कोई स्मेल नहीं आएगी ट्रेन में, तू परेशान मत हो.

अब दीदी को मैंने वापस लोअर पहना दिया.

फिर हम तीनों फ्रेश होकर वापस अपनी सीट पर बैठ गए.

दीदी बोली- यार सच में जहां कोई आ जाने का डर हो, वहां चुदाई में अलग मज़ा आता है.
सचिन बोला- यार अभिषेक, सच में तुमने आज अच्छा मज़ा करवा दिया. वरना मैं तो सोच रहा था कि ट्रेन में कैसे होगा!

दीदी थकने के कारण अपनी सीट पर जाकर सो चुकी थी.
फिर धीरे-धीरे लोग ट्रेन में आने लगे और फिर हम भी सो गए.

 

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